Dr. Keshav Baliram Hedgewar

डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म (1 अप्रैल 1889) को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ I यह शक संवत 1911 का पहला दिन था – भारतीय संदर्भ में अतिशुभ एवं महत्वपूर्ण दिन I बालक का नाम केशव रखा गया I हेडगेवार परिवार मूलत: आंध्रा का था I यह लोग गोदावरी हरिद्रा तथा वनजरा के संगम पर बसे कंदकुर्ती गाँव में रहते थे I पिता बलिरामपंत हेडगेवार वेदविद्या के ज्ञाता, कर्मनिष्ठ और परोपकारी थे I माता रेवतीबाई सुशील और धार्मिक वृत्ति की महिला थी I उन्होंने तीन पुत्रों तथा तीन कन्याओं को जन्म दिया I पुत्रों में बड़े थे महादेव मंझले सीताराम और छोटे केशव I

वह 1897 का दिन था अंग्रेज लोग देशभर में बड़ा समारोह मना रहे थे I स्कूलों में मिठाइयाँ बाँटी गई I सब बच्चे खुश हुए I वे मिठाई की अंग्रेजों की तथा विक्टोरिया रानी की स्तुति करने लगे I यह सब देख केशव से नहीं रहा गया I वह व्यथित था, उसने मिठाई को कूड़ेदान में फेंकते हुए कहा “अंग्रेज और उनकी रानी सब हमारे शत्रु हैं I मिठाई खिलाकर वे गुलामी की जंजीरें और अधिक रखना चाहते हैं I”

सन 1901 में एडवर्ड सप्तम इंग्लेंड का राजा बना I अंग्रेजों ने उसके राज्यारोहण का उत्सव मनाया I हजारों लोग उसे देखने गए I मुहल्ले के सब बालक उसे देखने गए I परंतु केशव नहीं गया I उसने कहा- “यह हमारे शत्रुओं का राजा है I उस के राज्यारोहण की खुशी हमें क्यों हो ? इस अवसर पर ख़ुशियाँ मनाना, लज्जा की बात है I”

सन 1902 में नागपुर में प्लेग फैला, घर-घर लोग मरने लगे I यह , विचित्र तथा भयानक रोग था जिस पर कोई भी दवा असर नहीं करती थी I जब किसी के बीमार होने की या मरने की खबर पहुँचती, तो पिता बलिरामपंत वहाँ जाते और आवश्यक सहायता-सामग्री पहुँचाते I

थोड़े ही दिनों में प्लेग ने उन पर भी आक्रमण किया I उनकी पत्नी भी बीमार हो गई I दुर्भाग्य से दोनों ने एक ही दिन इस लोक से प्रस्थान किया I उस समय केशव की आयु केवल 13 वर्ष की थी I

14 वर्ष की आयु का केशव नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में पढ़ता था I उसने इस दुष्टता का विरोध करने का निश्चय किया I सभी मित्रों को जुटा कर उसने एक योजना बनाई I प्रत्येक वर्ग के विद्यार्थी के पास बात चुपचाप पहुँच गई I सब ने संकल्प के साथ कहा, “हाँ, हम ऐसा ही करेंगे I”

शालानिरीक्षक अधिकारी नित्य की जांच के लिए विद्यालय में आने वाले थे I विद्यार्थियों ने उनके स्वागत की अनूठी योजना बनाई I उनके कक्ष में पदार्पण करते ही, सब विद्यार्थी एक साथ गरज उठे, “वन्देमातरम I” हर कक्षा में यही हुआ I

निरीक्षण कार्य ठप्प हो गया I अधिकारी क्रोध में तमतमा उठे I वे मुख्याध्यापक पर बरस पड़े- “यह कैसी बगावत हो रही है ? कौन है इसके पीछे ? सब को कड़ी सजा दो” I

मुख्याध्यापक ने विद्यार्थियों को कड़ी डाँट पिलाई I शिक्षकों ने विद्यार्थियों को मारा, पीटा, डराया, धमकाया, ललचाया और बार-बार पूछा इसके मूल में कौन है बताओ I किसी ने भी केशव का नाम नहीं बताया I

वन्देमातरम और भारतमाता की जय के नारे लगाते हुए विद्यार्थी अपने अपने घर चले गये I अंत में, यह पता चल ही गया कि यह काम केशव ने किया है बहुत समझाने पर भी केशव ने माफी नहीं माँगी I उसने कहा जो शासन अपनी माँ को प्रणाम नहीं करने देता वह अन्यायी है I उसे उखाड़ फैंकना चाहिये I केशव को विद्यालय से निकाल दिया गया I

केशवराव हेडगेवार कोलकाता से पढ़ाई कर डॉक्टर बनकर नागपुर लौटे I परंतु न तो उन्होंने कहीं नौकरी की ना ही दवाखाना खोला I उनके भाई तथा अन्य संबंधी उन्हें धनोपार्जन हेतु कई सुझाव देते रहे I डॉक्टर जी सब की बातें विनम्रता से सुनते थे परंतु उनका मुख्य ध्येय था देश के लिए कार्य करना जिसमें वे पूरी निष्ठा व समर्पण से लगे रहते थे I

सन 1914 में यूरोप में प्रथम महायुद्ध छिडा I प्रारंभ में अंग्रेजों की पराजय होती रही I सन 1918 में प्रथम महायुद्ध समाप्त हुआ I अंग्रेजों की जीत हुई I भारत में नियुक्त अंग्रेज अधिकारी राक्षसी अत्याचार करने लगे I अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 के दिन जनरल डायर के नेतृत्व में हजारों लोगों, जिसमें स्त्री- पुरुष, बच्चे- बूढ़े सभी थे, को निर्दयता से गोलियों से भून दिया गया I

सन 1920 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी की मृत्यु हुई I गांधीजी की राजनीति ने भी व्यापक रूप नहीं लिया था I क्रांतिकारी नेताओं को सर्वत्र अपयश ही दिखाई देने लगा I

सन 1925 कि विजयादशमी के शुभमुहूर्त पर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की प्रारंभ में सब सदस्य सप्ताह में एक दिन जुटते थे I चर्चा-भाषण आदि होते थे I फिर मोहिते के बाड़े में संघ ने शाखा का रूप धारण किया I

डॉक्टर जी का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगा I स्वयंसेवक-गण रातदिन उनकी सेवा में जुटे रहे I परंतु ईश्वर की इच्छा प्रतिकूल थी I उन्हें मेयो अस्पताल में ले जाया गया I फिर वहाँ से नागपुर में नगर संघचालक घटाटेजी के बंगले पर लाया गया I

आवश्यक चिकित्सा होती रही, परंतु डॉक्टर जी सब कुछ जान गये उन्होंने संघकार्य का भार माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य “श्रीगुरूजी” को सौंपा I डॉक्टर जी ने जो अनगिनत निष्ठावान एवं कार्यकुशल कार्यकर्ता जुटाए थे, उनमें वे सर्वोपरि थे I

शुक्रवार दिनाँक 21 जून 1940 को प्रातः उनकी प्राणतज्योति महाज्योति में विलीन हो गयी I